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ई॒ळेन्यो॑ नम॒स्य॑स्ति॒रस्तमां॑सि दर्श॒तः। सम॒ग्निरि॑ध्यते॒ वृषा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īḻenyo namasyas tiras tamāṁsi darśataḥ | sam agnir idhyate vṛṣā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒ळेन्यः॑। न॒म॒स्यः॑। ति॒रः। तमां॑सि। द॒र्श॒तः। सम्। अ॒ग्निः। इ॒ध्य॒ते॒। वृषा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (तमांसि) रात्रियों के (तिरः) तिरस्कार करनेवाले (अग्निः) अग्नि के सदृश प्रकाशमान (वृषा) वृष्टिकर्त्ता (दर्शतः) देखने (ईडेन्यः) स्तुति करने और (नमस्यः) सत्कार करने योग्य पुरुष (सम्) उत्तम प्रकार (इध्यते) प्रकाशित किया जाता है, उसका आप निरन्तर आदर करो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य अन्धकार को दूर कर प्रकाश उत्पन्न करता है, वैसे ही यथार्थवक्ता विद्वान् लोग अविद्या का नाश और विद्या का प्रकाश करते हैं ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्यास्तमांसि तिरः तिरस्कुर्वन्नग्निरिव वृषा दर्शत ईळेन्यो नमस्यः समिध्यते तं यूयं सततं भजत ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईळेन्यः) ईळितुं स्तोतुमर्हः (नमस्यः) सत्कर्त्तुं योग्यः (तिरः) तिरस्कुर्वन् (तमांसि) रात्रीः (दर्शतः) द्रष्टुं योग्यः (सम्) सम्यक् (अग्निः) अग्निरिव प्रकाशमानः (इध्यते) प्रदीप्यते (वृषा) वर्षकः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यस्तमो निहत्य प्रकाशं जनयति तथैवाप्ता विद्वांसोऽविद्यां हत्वा विद्यां प्रकाशयन्ति ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य अंधकार दूर करून प्रकाश उत्पन्न करतो, तसेच आप्त विद्वान लोक अविद्येचा नाश करून विद्येचा प्रकाश करतात. ॥ १३ ॥